
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने एक बार फिर से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) चुनाव में अपना परचम लहराया है। इस बार की जीत केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की छात्र राजनीति में एक गूंज बनकर सामने आई है। धनबाद महानगर के कार्यकर्ताओं ने इस जीत का भव्य जश्न मनाते हुए रणधीर वर्मा चौक पर मिठाई बाँटी, आतिशबाजी की और अबीर-गुलाल लगाकर एक-दूसरे को बधाइयाँ दीं। यह दृश्य केवल एक राजनीतिक जीत का नहीं था, बल्कि उस भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक था जो झारखंड से दिल्ली तक विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बाँधता है।
ऐतिहासिक जीत के आंकड़े
अभाविप ने इस बार डूसू के अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव तीनों महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की। अध्यक्ष पद पर आर्यन मान ने 16,196 मतों के रिकॉर्ड अंतर से विजय प्राप्त की, जो डूसू चुनाव इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी जीत है। सचिव पद पर कुणाल चौधरी ने 7,662 वोटों से जीत दर्ज की, जबकि संयुक्त सचिव पद पर दीपिका झा ने 4,445 मतों से बाज़ी मारी। यह केवल संयोग नहीं है कि तीनों पदों पर अभाविप के प्रत्याशियों ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया। यह परिणाम दर्शाता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने साफ़ तौर पर उस राजनीति को नकार दिया जो वर्षों से केवल वादों और भ्रम फैलाने तक सीमित थी।

राष्ट्र निर्माण की धारा में युवा
अभाविप के झारखंड प्रदेश सह मंत्री अंशु तिवारी ने इस मौके पर कहा कि यह जीत “रचनात्मक राष्ट्र निर्माण” की विचारधारा की जीत है। आज का युवा किसी भी तरह के विध्वंसक या नकारात्मक एजेंडे को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। छात्रों ने यह संदेश दे दिया है कि विश्वविद्यालयों में केवल वही राजनीति चलेगी जो राष्ट्रहित और छात्रहित को सर्वोपरि रखे। तिवारी ने उन सभी मतदानकर्मियों, विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस और दिल्ली नगर निगम का भी धन्यवाद दिया जिन्होंने चुनाव को शांतिपूर्ण और पारदर्शी तरीके से संपन्न करवाया।
भ्रम और प्रपंच से ऊपर उठता छात्र समाज

धनबाद विभाग संयोजक सुधांशु गुप्ता ने कहा कि आज का युवा झूठे वादों और प्रपंच से ऊपर उठ चुका है। दशकों से एनएसयूआई और कांग्रेस ने छात्र राजनीति में अवसरवाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार की संस्कृति को थोपने का प्रयास किया था। लेकिन इस चुनाव में छात्रों ने उस पूरी राजनीति को नकार दिया। गुप्ता ने कहा कि यह जीत केवल एबीवीपी की नहीं है, बल्कि उस सोच की जीत है जो विश्वविद्यालयों को सकारात्मक ऊर्जा और राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला के रूप में देखती है।
लोकतंत्र में आस्था की जीत
आकाश कुमार सिंह ने कहा कि यह जीत लोकतंत्र में आस्था की जीत है। विद्यार्थी परिषद ने लगातार शिक्षा और छात्रहित के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है, यही कारण है कि युवाओं का विश्वास परिषद पर लगातार मजबूत होता जा रहा है। डूसू चुनाव में कांग्रेस और एनएसयूआई ने छात्रों को जाति और क्षेत्रीयता के आधार पर बाँटने का प्रयास किया, लेकिन छात्रों ने उस विभाजनकारी एजेंडे को सिरे से खारिज कर दिया। सिंह के अनुसार, इस जीत ने यह भी साबित कर दिया है कि छात्र राजनीति अब केवल विश्वविद्यालय की सीमा तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका सीधा असर देश की मुख्यधारा की राजनीति पर भी पड़ रहा है।
महिलाओं का सशक्त प्रतिनिधित्व
प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य प्रियंका गोराई ने कहा कि अभाविप पिछले कई दशकों से छात्राओं को मजबूत प्रतिनिधित्व देती आई है। डूसू चुनावों में यह परंपरा कायम रही है कि छात्र संघ की केंद्रीय पैनल में अभाविप की महिला प्रत्याशी लगातार जीत दर्ज करती हैं। इस बार दीपिका झा के संयुक्त सचिव पद पर विजयी होने से एक बार फिर साबित हुआ कि एबीवीपी महिलाओं के सशक्तिकरण और नेतृत्व को महत्व देती है। गोराई ने कहा कि यह न केवल छात्र राजनीति के लिए बल्कि पूरे देश की महिला छात्राओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
झारखंड कनेक्शन और स्थानीय उत्साह
दिल्ली की इस जीत का जश्न झारखंड में क्यों मनाया गया, इसका जवाब सरल है। अभाविप का संगठनात्मक ढाँचा ऐसा है जिसमें देश के हर राज्य का जुड़ाव दिल्ली विश्वविद्यालय से महसूस होता है। धनबाद, बोकारो और कोयलांचल क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने हमेशा से दिल्ली में पढ़ने वाले छात्रों के साथ एकात्मता दिखाई है। यही कारण है कि जब दिल्ली विश्वविद्यालय में विजय का डंका बजा, तो धनबाद के रणधीर वर्मा चौक पर भी पटाखे गूँज उठे। ग्रामीण जिला संयोजक अनुभव शर्मा ने तो यहाँ तक कहा कि झारखंड सरकार को भी अपने विश्वविद्यालयों में पारदर्शी छात्र संघ चुनाव करवाने चाहिए, ताकि युवाओं को नेतृत्व का अवसर मिल सके।
विचारधाराओं की टक्कर
डूसू चुनावों को अक्सर राष्ट्रीय राजनीति का ट्रेंडसेटर कहा जाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्था नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की राजनीतिक धारा का प्रतिनिधित्व करता है। पिछले वर्षों में कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई ने छात्र राजनीति को अपने एजेंडे के अनुसार ढालने की कोशिश की, जबकि अभाविप ने शिक्षा, पारदर्शिता और राष्ट्र निर्माण के मुद्दों को लगातार आगे रखा। इस बार की जीत से यह साफ़ हो गया है कि नई पीढ़ी—खासतौर पर जेन-ज़ी छात्र—अब भावनाओं या खोखले वादों से प्रभावित होने वाले नहीं हैं। वे ठोस काम और साफ़ नीयत वाली राजनीति को प्राथमिकता दे रहे हैं।
भविष्य की राह
अभाविप की इस जीत ने आने वाले वर्षों के लिए छात्र राजनीति की दिशा तय कर दी है। अब यह उम्मीद की जा रही है कि विश्वविद्यालयों में मुद्दों पर आधारित, सकारात्मक और रचनात्मक राजनीति को और मजबूती मिलेगी। शिक्षा के ढांचे में सुधार, छात्रवृत्ति, अनुसंधान सुविधाएँ, कैंपस सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर अभाविप ने जो पहल की है, उसे आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी अब इन नवनिर्वाचित पदाधिकारियों के कंधों पर होगी।
उपसंहार
डूसू चुनाव में अभाविप की जीत केवल एक संगठन की जीत नहीं है, बल्कि उस युवा सोच की जीत है जो भारत को नए आयामों पर ले जाना चाहती है। धनबाद से लेकर दिल्ली तक, यह जश्न इस बात का प्रतीक है कि विद्यार्थी परिषद केवल चुनाव लड़ने वाला संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—एक ऐसा आंदोलन जो शिक्षा को समाज परिवर्तन का साधन और छात्रों को राष्ट्र निर्माण का अग्रदूत मानता है।
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