धनबाद रेलवे पार्सल कार्यालय में एक गंभीर लापरवाही और पशु क्रूरता (पशु तस्करी) का मामला सामने आया है। जानकारी के मुताबिक कोलकाता से आए तस्करों द्वारा बड़ी संख्या में बेजुबान खरगोशों को पार्सल के माध्यम से मुरादाबाद भेजने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन जब पार्सल विभाग ने नियमों के तहत बुकिंग लेने से साफ इनकार कर दिया, तो तस्कर जानवरों को वापस ले जाने का बहाना बनाकर मौके से फरार हो गए।

जांच के दौरान पता चला कि इन खरगोशों को शाहा एंटरप्राइजेज द्वारा धनबाद से मुरादाबाद भेजने की तैयारी थी। रेलवे नियमों के अनुसार एक पिंजरे में अधिकतम 10 खरगोश भेजने की अनुमति है, लेकिन मौके पर कई पिंजरों में 25 से अधिक खरगोश भरे मिले—जो पशु क्रूरता कानूनों और रेलवे पार्सल नियमों की साफ अवहेलना है।
24 घंटे से अधिक समय तक बिना दाना–पानी के पड़े रहे जीवित जानवर तस्करों के भाग जाने के बाद दर्जनों खरगोश पार्सल कार्यालय में बिना देखरेख और बिना भोजन–पानी के पड़े रहे, जिससे कई खरगोशों की मौत हो गई। वहीं कुछ खरगोशों ने इसी दौरान बच्चों को जन्म दिया, जिससे हालात और भी दर्दनाक हो गए। घटना स्थल पर मौजूद कर्मचारी भी असमंजस में रहे कि इन जानवरों की जिम्मेदारी कौन लेगा।

पशु क्रूरता और अवैध तस्करी पर उठे सवाल
इस घटना ने रेलवे सुरक्षा और पशु क्रूरता के कानूनों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बिना उचित दस्तावेज, बिना केयर और बिना अनुमति के जीवित जानवरों को पार्सल द्वारा भेजने की कोशिश स्पष्ट रूप से अवैध है और ‘Prevention of Cruelty to Animals Act’ का सीधा उल्लंघन है।
सवाल यह भी उठता है कि —
• कोलकाता से धनबाद तक जीवित जानवरों को कौन लेकर आया?
• कैसे बिना किसी निगरानी के दर्जनों जानवर स्टेशन तक पहुंच गए?
• तस्कर फरार कैसे हो गए और उनकी पहचान क्यों नहीं हो पाई?
• रेल प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की?
घटना के बाद स्थानीय पशु प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने रेलवे प्रशासन की कड़ी आलोचना की है और मांग की है कि—
• जानवरों को तुरंत सुरक्षित स्थान पर रखा जाए
• दोषियों की पहचान कर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए
• रेलवे पार्सल विभाग में जीवित जानवरों की तस्करी रोकने के लिए सख्त व्यवस्था की जाए
रेलवे सूत्रों के अनुसार मामले की जांच शुरू कर दी गई है और तस्करों की पहचान हेतु सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं।
यह घटना न केवल रेलवे सुरक्षा की विफलता को उजागर करती है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है, क्योंकि बेजुबान जानवरों को इस तरह तड़पते छोड़ देना क्रूरता की पराकाष्ठा है।
धनबाद में सामने आया यह मामला सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि पूरे देश में तेजी से बढ़ते पशु तस्करी के नेटवर्क की भयावह तस्वीर पेश करता है। विशेष रूप से छोटे और नरम स्वभाव वाले जानवर—जैसे खरगोश, गिनी पिग, कछुए और पंछी—आजकल अवैध कारोबारियों के निशाने पर होते हैं। रेलवे मार्ग का इस्तेमाल तस्करों के लिए सबसे आसान माध्यम बनकर उभरा है, क्योंकि यात्रियों और कर्मचारियों की भीड़ के बीच इन गतिविधियों पर निगरानी रखना मुश्किल होता है।
धनबाद रेलवे पार्सल कार्यालय में मिले पिंजरों की हालत देखकर स्पष्ट था कि तस्करों के लिए इन जीवों की जान की कोई कीमत नहीं। कई पिंजरों में 25–30 तक खरगोश ठूंस-ठूंस कर भरे गए थे। यह न केवल रेलवे पार्सल नियमों का खुला उल्लंघन है बल्कि पशु तस्करी के दौरान होने वाली क्रूरता का एक और उदाहरण है। नियमों के अनुसार किसी भी जीवित जानवर को भेजने के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट, पार्सल रिक्वेस्ट फॉर्म, और पशु चिकित्सक की अनुमति अनिवार्य होती है — लेकिन इस मामले में कोई कागज़ नहीं मिला।
तस्करों के भाग जाने के बाद जो दृश्य सामने आया, वह और भी दिल दहला देने वाला था। बिना पानी और भोजन के लगभग 24 घंटे पड़े रहने के कारण कई खरगोशों ने वहीं दम तोड़ दिया। जो जिंदा बचे, उनकी हालत बेहद खराब थी—कुछ कमजोर होकर लेटे थे, कुछ पिंजरे में सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसी बीच कुछ मादाओं ने बच्चों को जन्म दिया। ऐसे हालात में नवजात बच्चों का जीवित रहना लगभग असंभव था। यह घटना दर्शाती है कि पशु तस्करी सिर्फ कानून तोड़ने का मामला नहीं, बल्कि संवेदनहीनता की हद है।
रेलवे प्रशासन पर उठते सवाल

इस घटना ने रेलवे प्रशासन की कार्यप्रणाली और सुरक्षा पर भी कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि—
- कोलकाता से धनबाद तक इतने बड़े पैमाने पर जीवित जानवर कैसे बिना निगरानी लाए जा सकते हैं?
- स्टेशन पर इनकी एंट्री का कोई रिकॉर्ड क्यों नहीं मिला?
- पार्सल कार्यालय तक पहुंचने से पहले कोई चेक क्यों नहीं हुआ?
ऐसे सवाल साबित करते हैं कि पशु तस्करी का नेटवर्क काफ़ी मजबूत और शातिर हो चुका है। कई बार तस्कर स्टेशन के बाहर एजेंटों का इस्तेमाल करते हैं जो पिंजरों को पहले से तय जगहों पर छोड़कर गायब हो जाते हैं। बाद में इन्हें पार्सल के रूप में भेज दिया जाता है।
पशु तस्करी का बढ़ता काला बाज़ार
भारत में खरगोशों की पशु तस्करी के पीछे सबसे बड़ा कारण है—
- अवैध पालतू जानवरों का काला बाज़ार
- मांस और फर (fur) का कारोबार
- लैब टेस्ट सप्लाई चेन
- बच्चों के जन्मदिन/इवेंट में अवैध बर्ड-एनिमल सप्लाई
इन सभी नेटवर्कों में छोटे आकार वाले जानवरों की मांग ज्यादा होती है। तस्करों के लिए यह ‘लो रिस्क – हाई प्रॉफ़िट’ का धंधा साबित होता है, क्योंकि रेलवे या बसों के माध्यम से इन्हें भेजना आसान होता है और कई जगह निगरानी बहुत कमजोर रहती है।
सामाजिक संगठनों की मांग
पशु तस्करी की घटना सामने आने के बाद धनबाद के कई पशु प्रेमी संगठनों ने रेलवे प्रशासन के खिलाफ गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि—
- जानवरों को तुरंत रेस्क्यू कर पशु आश्रय में भेजा जाए
- तस्करों की पहचान कर मामला दर्ज किया जाए
- रेलवे में जीवित जानवरों की पशु तस्करी रोकने के लिए सख्त प्रोटोकॉल लागू किए जाएं
- स्टेशन परिसर में एनिमल-केयर टीम तैनात की जाए
इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि कोलकाता से लेकर मुरादाबाद तक की पूरी सप्लाई चेन की जांच होनी चाहिए, क्योंकि पशु तस्करी का यह मामला संयोग नहीं बल्कि एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा लगता है।
सीसीटीवी फुटेज और जांच का दावा
रेलवे सूत्रों की मानें तो सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं।
यदि फुटेज में तस्करों के चेहरे स्पष्ट दिखाई देते हैं, तो उनके खिलाफ मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की कार्रवाई होगी। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे मामलों में अक्सर जांच धीमी पड़ जाती है और तस्कर बच निकलते हैं। यह भी एक कारण है कि पशु तस्करी देश में लगातार बढ़ रही है।
मानवता पर बड़ा सवाल
धनबाद की इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि पशु तस्करी सिर्फ अवैध व्यापार नहीं बल्कि मानव संवेदनाओं की विफलता भी है।
जब समाज में बेजुबान जानवरों की पीड़ा को कोई महत्व नहीं दिया जाता, तो ऐसी घटनाएँ बार-बार दोहराई जाती हैं।
अगर प्रशासन, रेलवे और सरकार पशु तस्करी की इस दिशा में गंभीर कदम नहीं उठाती, तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और भी बढ़ेंगी।
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